Tuesday, September 22, 2009

मिलना अजीज़ों का

पिछले दिनो मौका मिला दिल्ली जाने का जिस सुबह ९ बजे पहुँची और रात नौ बजे चल दी। मिलना तो बहुत लोगो से था मगर मिल पाई कुछ ही लोगो से। मगर हाँ जिन से मिली उनका मिलना जीवन भर ना भुला पाऊँगी।

वरुण की तबीयत के चलते मीनाक्षी दीदी से अक्सर मिलने की बात हुआ करती ही थी। कई बार मन हुआ कि बस शनिवार रविवार का कर्यक्रम बना कर पहुँच जाया जाये। मीनू दी माँ का असल रूप हैं। मैं लखनऊ से कानपुर शायद उतनी जल्दी नही पहुँच पाती होऊँगी, जितनी जल्दी वो दुबई से दिल्ली पहुँच जाती हैं। कई बार दीदी का भी प्रोग्राम कानपुर तक आने का बन कर रद्द हुआ। ऐसे में जब ये खबर लगी की हमें दिल्ली जाना है तो उन्हे खबर देना अपना पहला कर्तव्य था। यूँ मिलने की उम्मीदे शुरू से अंत तक नही ही थी। मगर लोकेशन मैं देती रह रही थी उन्हें।

दूसरा व्यक्ति था अर्श.. जिससे रोज चैट पर एक बार बुज़ हो ही जाती है और साथ तो उसे भी बतान ही था।

और तीसरा था राकेश... जिससे मिलना नही था.. बस मिल गई..... अपनी किस्मत और उसकी पता नही किस चीज़ से

तो मेरी ये यात्रा शुरु हुई ३ सितंबर की रात से। अच्छी बात ये है कि हम खुद चाहे कुछ कर पाये या नही मगर हमारे ५-६ साल ही बाद पैदा हुए बाल बच्चे बहुत कुछ कर गये है। तो अब हमें करना बस इतना होता है कि हम अपने मातृत्व की दुहाई दे कर उन्हे कहीं भी बुला लेते हैं और ऐश करते हैं। तो जाते समय इसी प्रकार का मेरा सुपुत्र अमित अपनी आइटन लेकर पहुँच गया था और दिल्ली स्टेशन पर मेरा दूसरा सुपुत्र (भांजा) एस्टिलो ले कर खड़ा पाया गया। फिर उसने अपना पुत्र धर्म निभाते हुए मुझे मेरी कज़िन (दीदी)के घर सरोजिनी नगर छोड़ा,कार और एक दिन के लिये एक्सप्लोर किये गये ड्राइवर को मेरी सेवा में छोड़ा और खुद बस पकड़ कर कैसे गया ये उसकी अपनी समस्या रही।

यहाँ से मैं विजू (विजित)को तो अपने साथ ले ही गई थी, जो मेरा छोटा भांजा है और मेरे साथ ही रहता है वर्तमान में। स्टेशन से सरोजिनी नगर के बीच मैं हर फोन पर अपना डायलॉग दोहराती रही " मुझे इतने बजे यहाँ, इतने बजे यहाँ और इतने बजे यहाँ पहुँचना है तो मुझे जहाँ कैच कर सको कर लेना" जिस का अब तक मजाक उड़ाया जाता है घर में लड़कों द्वारा।

मैने लखनऊ से राकेश को अपने प्रोग्राम के विषय मे बताया था, तो उसने बेचारगी के साथ कहा कि "दीदी जाना तो दिल्ली मुझे भी है, मगर आपके दिल्ली से लोट आने के बाद। मगर जब मैने जाने के दो दिन पहले बात की तो पता चला कि उसका कार्यक्रम अचानक बदल गया और वो दिल्ली पहुँच गया है।

तो मेरा काम मालवीय नगर के आस पास कहीं था। जो कि उम्मीद से अधिक जल्दी निपट गया। मीनू दीदी के हाथ से तो मैं छूट ही चुकी थी। मुझे लगा कि अब तो मुझे वो कैच कर नही पाएंगी। मैने अर्श को फोन किया कि हम यहाँ से अक्षरधाम मंदिर जा रहे हैं तो तुम मुझे वहीं पर कैच कर लो। वो बेचारा तुरंत अक्षरधाम के मंदिर की तरफ चल दिया। इधर मैं जब लगभग २० मिनट की यात्रा कर चुकी तो मुझे लगा कि ये तो वही गलियाँ हैं जहाँ से हम अभी गुज़रे थे। मैने ड्राइवर भाई से पूछा तो उसने बताया कि सही समझा आप सरोजिनी नगर के पास हैं। यह पूछने पर कि अभी कितनी देर लगेगी अक्षरधाम मंदिर पहुँचने में उसने बताया ४५ मिनट..... हमे लगा कि इतना भागने दौड़ने से अच्छा है कि घर चल कर चाय पी जाये और थोड़ी पीठ सीधी की जाये। तो तुरंत हमने अक्षरधाम की ओर अग्रसर अर्श को फोन किया कि हमने अपना इरादा बदल दिया है और वो अपना रास्ता बदल दे। उसने तुरंत एक आज्ञाकारी अनुज की तरह बिना शिकायत अपना रास्ता बदल दिया।

मेरे दीदी के घर पहुँचने के मुश्किल से १० मिनट बाद ही अर्श ने ढेर सारे गुलाबों से सजे बुके के साथ प्रवेश
किया और जुमला फेंका " Lots of rose for a for a rose" हमने उसे समझाया कि भईया हम लड़कियों का बड़ा प्राबलम ये है कि हम लोग जानते हैं कि अगला झूठ बोल रहा है और फिर भी खुश हो जाते हैं। तो उसने तुरंत मेरी गलतफहमी दूर करते हुए कहा " आप इसे खूबसूरती से क्यों ले रहीं हैं ? मेरा मतलब है कि जो काँटो मे भी खिला रहे और अपनी खुशबू बिखेरता रहे" तो हम जितना चढ़े थे उससे दोगुना नीचे उतर आये।


खैर अर्श के आने के साथ ही साथ मेरा विजू जो थोड़ी देर को नीचे चल गया था वो भी आया और आते ही अपनी नान स्टाप कॉमेडी शुरु कर दी। अर्श ने आश्चर्य से मुझे देखते हुए कहा " आप से भी ज्यादा कोई बोल सकता है क्या.....?" मैने उससे कहा "भईया जिस घर मे भगवान ने मुझे जन्म दिया है वहाँ खेती होती है बातों की।"
अभी वो इस विषय पर सोच ही रहा था कि मेरा दिल्ली निवासी एमबीए रत भतीजा आशीष भी पहुँच गया वहाँ और उस बालक की खास बात ये है कि जिस खेती की बात मैं कर रही थी वो उस फसल का सर्वश्रेष्ठ खेत है। अर्श फिर आश्चर्य में आ गया "आप दोनो से भी ज्यादा कोई बोलता है क्या...?????" अब कौन समझाये उस शख्स को हम लोग खानदानी मितभाषी लोग हैं।

चलिये मैं अर्श के साथ कम बोलने की कोशिश कर ही रही थी कि तभी मीनू दी का फोन आ गया...! "तुम तो बाउंड्री लाइन पार कर गई, अब तुम्हे कहाँ कैच किया जाये ?" हमने कहा "हम दर्शक दीर्घा मे है, जो चाहे कैच कर सकता है अब.. अब हम उड़ नही रहे।"

बस थोड़ी ही देर में मीनू दीदी भी एक उधार के ड्राइवर के साथ पधार गईं। ढेर सारे मातृत्व की धनी मीनू दी भी मेरी मितभाषिता की शिकायत करती रहीं...! कह रहीं थीं कि कभी कभी तो हम फोन लिये बैठे रहते हैं कंचन बोलने का कोई मौका ही नही देती। अब मतलब कि हम कुछ बोलेगे तभी ना अगला कुछ जवाब देगा।हम कुछ बोलते ही नही हैं किसी से अपनी मितभाषिता के चलते।


खैर मिलते मिलाते वक़्त कैसे फुर्र हुआ कुछ पता ही नही चला। मीनू दीदी सीमित समय के लिये आई थीं चली गईं और मैं स्टेशन जाने को तैयार होने लगी।

उधर राकेश का फोन आ गया था कि वो गुड़गाँव से दिल्ली स्टेशन के लिये कूच कर चुका है। और उधर हम जब स्टेशन को निकलने लगे तो पता चला कि ट्रेन पुरानी दिल्ली आयेगी। राकेश बस नई दिल्ली पहुँचा ही था कि हमने फोन पर उसे निदेश दिया पुरानी दिल्ली पहुँचने का। बेचारा करता ही क्या ? तुरंत ड्राइवर को इन्स्ट्रक्शन दिया पुरानी दिल्ली पहुँचने का।

दिल्ली स्टेशन हम दोनो के लिये नया ही था। हम दोनो कम से कम १५ मिनट तो एक ही जगह पर एक सरे को ढूँढ़ते रहे। मुझे बहुत गुस्सा आ रहा था। मेरी ट्रेन का समय हो गया था और वो नज़र ही नही आ रहा था। मैने झुँझला कर कहा "तुम लौट जाओ, मेरी तुमसे मुलाकात लिखी ही नही है।" तो ज़ाहिर सी बात है कि किसी को भी बहुत खराब लगेगा ये सुनकर। राकेश ने कहा कि "मैं आपका तो कुछ नही कर सकता था, मगर मेरा मन हुआ कि मैं इस फोन को उठा के फेंक दूं जहाँ से ये सुनने को मिल रहा है।"और अँत में अर्श ने ही राकेश को पहचाना और आखिर दो मिनट के लिये हम स्टेशन पर मिले।

मुझे वहाँ से सिद्धार्थनगर अपनी बड़ी दीदी के घर निकलना था। मेरे साथ मेरा भांजा विपुल भी आ रहा था। वो आफिस से सीधे स्टेशन पहुँच चुका था। मुझे लेकर दोनो भांजे (विपुल और विजू)प्लेटफॉर्म पर पहुँचे दोनो अनुज साथ थे...! हम ट्रेन छूटने के अंतिम समय पर ही पहुँचे थे राकेश के लिये मैं समझ ही नही पा रही थी कि मिली हूँ या बिछड़ रही हूँ...!

अभी सब बैठे ही थे मैने विपुल से अपने दोनो अनुजों का परिचय कराया ही था कि ट्रेन हिल पड़ी...! और दोनो अनुजों को उतरना पड़ गया.. ! शहीद एक्सप्रेस की हालत भी शहीदों की समाधि जैसी ही है कुछ। अँधेरा बहुत था वहाँ। जाते जाते राकैश जो कह गया वो ठीक से तो उसे भी नही याद है...!तरंत जो मन में आया वो..! मगर था कुछ इस तरह...



ये माना कि उस तरफ अँधेरा बहुत है,
मगर जितनी हमे चाहिये थी,
रोशनी इस तरफ मिलती रही
और दोनो चले गये..! मैं मन से दोनो को आशीष देती रही बस...!

और ये प्रिय और प्यारे जूनियर्स से मिलने का दौर अभी शायद खतम नही होना था।

जाने के बहुत पहले एक दिन अर्श ने बताया था कि अंकित आपके शहर में पहुँचे है, मिले कि नही?? मुझे लगा कि वो आ कर चला गया होगा...! मगर फिर जब उसके ब्लॉग पर गई तो पता चला कि वो तो लंबे समय के लिये आया है और बहुत से लोगो ने मेरे लिये उनसे सलाम भी भेज रखा था..! तो मैने तुरंत गुरुकुल की सीनियर होने की धौंस देते हूए कहा कि थोड़ा डरा करो..सीनियर हैं तुम से रैगिंग वैगिंग ले लेगे तो लेने के देने पड़ जायेंगे बिना मतलब..! घर आने पर उसने एक बार दबी ज़ुबान से कहना चाहा कि " गुरु जी से शिकायत हो जायेगी..!" तो हमने तुरंत हड़का लिया...!"ये बातें गुरु जी तक नही पहुँचनी चाहिये..! वर्ना.....!!!!

खैर दिल्ली से आने के बाद अंकित से मिलने की तारीख तय हुई और मैने उसे अपनी दीदी के घर बुला लिया चूँकि उस दिन अचानक हमे दीदी ने अपने घर बुला लिया था।

अंकित से मिलने के पहले उससे कोई भी कम्युनिकेशन नही था। मगर मिलने के बाद लगा ही नही..! बहुत अच्छा बच्चा है..!संस्कारी.. जैसा कि मैने उसके ब्लॉग पर भी लिखा " ऐसा बच्चा जिसके अंदर पहाड़ी भोलापन अब भी बरकरार है।

अंकित के साथ घर में अकित की शेर ओ शायरी का भी दौर चला जो कि काफी रोचक था..!


लीजिये सब से पहले बालक की खिंचाई अंदाज़ देखिये



और फिर ये शेर



अजीब हालातों से गुज़र रहा हूँ,
अपनी ही बातों से मुकर रहा हूँ,
मेरी बातें मेरी बदमिजाज़ी नही
खाली बरतन हूँ अभी भर रहा हूँ

और कैट की तैयारी कर रहे विजू और आईआईटी की तैयारी कर रही सौम्या के लिये उसने कहा




जो बीता है भुला उसको, जो आगे है सुनहरा है,
नया जज़्बा नसों मे भर, नया आया सवेरा है,
भरोसा ही है इंसाँ का, खुदा को खींच लाया जो,
कहीं वो दूध पीता है,कहीं पत्थर पे उभरा है।

और फिर रिश्तों पर शेर के ठहाकों के बाद सुनाये गये दीदी को समर्पित ये शेर




मैं ग़लत था ये बात उसे काट रही थी,
इसलिये मेरी माँ मुझको डाँट रही थी

और ये जो विजू की ज़ुबाँ पर आज भी है


चाँद खिलौना तकते थे,
जब यारों हम बच्चे थे.
रिश्तों मे एक बंदिश है,
हम आवारा अच्छे थे...!

ऐसे ही बहुत से शेर ....रात के ११.०० बज चुके थे मुझे अपने घर निकलना था और अंकित को अपने होटल..! मैं और विजू उसे आटो तक छोड़ने गये...! जाते समय अंकित का पैर छूना ...बहुत सारा स्नेह उमड़ पड़ा और जाते जाते एक रिश्ता बना उससे...!

अनोखे लोग अनोखा अंदाज़..! राकेश ने जो विदा दी आपने सुनी..! अर्श ने जो कहा वो यूँ था

मैं खुश हूँ के तुने मुझे हाशिये पे रक्खा है
कम-से-कम वो जगह तो पूरी की पूरी मेरी है ...

और अंकित ने आटो मे ही लिखा

झूठे रिश्ते सच्चे लोग,
मिल जाते हैं अच्छे लोग
रिश्ते शायद तब हो ना हों,
जब समझेंगे रिश्ते लोग

दुआएं...दुआएं..दुआएं..जाने कितनी बार दुआएं निकल रही हैं इन प्यारे प्यारे अनुजों के लिये...सो आप भी शामिल हो जाइये मेरी दआ में

32 comments:

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

वाह क्या सजीव रिपोर्ट है -- ऐसा लगा हम भी सभी से मिल लिए - नव रात्र के शुभ अवसर पर
जय मातादी
बहुत स्नेह
- लावण्या

Udan Tashtari said...

बहुत अच्छा लगा रपट पढ़ना..सबको सुनना!! अर्श भाई, मीनू जी, अंकित आदि को तस्वीरों मे देखकर बहुत आनन्द आया. आभार.

अविनाश वाचस्पति said...

एकदम जीवंत रपट
पर मीनाक्षी जी
दिल्‍ली में रहीं
और हम रपट गए।

उनसे मिलने का
बार बार मन होता है
संयोग एक बार ही
बना है।

अब इतनी अच्‍छी रिपोर्ट
पढ़ी है तो इसकी रचयिता
कंचन जी से भी
मिलने का मन है।

अगली बार दिल्‍ली की
भागा दौड़ी में
तनिक सी दौड़
हम भी लगाना चाहेंगे।

avinashvachaspati@gmail.com

Anonymous said...

बढ़िया।
सजीव शब्द चित्रण, ऐसा लगा आपके साथ मैं भी सबसे मिल रहा हूँ।

बी एस पाबला

पंकज सुबीर said...

समस्‍या ये है कि जो दोनों ही लोग मिले अर्श और अंकित, वे दोनों ही कम बोलने वाले है । इसलिये बोलने का मौका तो वैसे भी उनको मिलना ही नहीं था । और तिस पर कंचन जैसे बोलने वाले के सामने दूसरा कोई क्‍या तो बोलेगा उसने तो सुनना ही है । एक शेर इसी बोलने पर अभी याद नहीं आ रहा कि किसका है ये शेर ।
रस कहा, फिर गुल कहा, आखिर में उसने ला कहा
इस तरह जालिम ने रसगुल्‍ले के टुकड़े कर दिये

के सी said...

क्या गड़बड़ झाला है 14 सितम्बर की पोस्ट देख कर सोचता रह गया कि कंचन जी को सबसे पहले पढ़ता हूँ और इस बार सप्ताह भर हो गया है .... पोस्ट पढी, खुद को कोसते हुए लेकिन कमेन्ट सेक्शन तक आते ही माजरा समझ आ गया कि पोस्ट को लिखना 14 को आरम्भ किया गया था और पोस्ट आज हुई है कमेंट्स देख कर राहत सब आज ही आये हैं.
इन बातों में कोई दम नहीं है कि कंचन जी बोलने नहीं देती है मेरी दो बार बात हुई है, उस पंद्रह मिनट से अधिक अवधि के वार्तालाप में मैंने कोई चार-पांच बार दस सेकेण्ड के अवसर निकाले हैं
जिस दिल्ली यात्रा के बारे में जानने के लिए मेल कर पूछ रहा था उसका पूरी लम्बाई का रिसाला पहुंचाने के लिए बहुत आभार. अर्श की वो पोस्ट बहुत संजीदा कर देने वाली थी पता नहीं उस पर क्या क्या लिखने की सोच रहा था जो लिख नहीं पाया पर लगा कि इस अपराध और वैमनस्य से भरी दुनिया की तमाम खबरों के बीच जैसे पं. रविशंकर द्वारा रचा गया कोई नया राग सितार पर सुन रहा हूँ.
पोस्ट बेहद सुंदर है रिश्ते, स्नेह, दुलार, ममत्व, जिज्ञासा, स्थान, लोग, समय... और भी बहुत कुछ यानि शेर सभी सुंदर और इन आशु कवियों से कभी मैं भी मिलना चाहूंगा.... आमीन !

डिम्पल मल्होत्रा said...

aap ke sath en logo se milna achha laga.. arsh ji ne kitna sahi kaha hai..आप इसे खूबसूरती से क्यों ले रहीं हैं ? मेरा मतलब है कि जो काँटो मे भी खिला रहे और अपनी खुशबू बिखेरता रहे"..tmaam umar ye kante sath dete hai fir bhi khusboo bikherna to nahi chhodta ye phool...kitna achha lagta hai bhale kam ho lakin ek puri jagah aapki to hai..मैं खुश हूँ के तुने मुझे हाशिये पे रक्खा है
कम-से-कम वो जगह तो पूरी की पूरी मेरी है ...yahi dua hai zindgee me hmesha achhe log hi mile...झूठे रिश्ते सच्चे लोग,
मिल जाते हैं अच्छे लोग
रिश्ते शायद तब हो ना हों,
जब समझेंगे रिश्ते लोग
log sach me rishto ko tab nahi samjh pate jab available hote hai...baad me rishto ke naam ke siwa kuchh hath nahi aataa...amazing post....

कुश said...

तो इसीलिए नज़र नहीं आई मैडम जी इतने दिनों.. वैसे दिल्ली से जयपुर ज्यादा दूर नहीं है.. आप हुकुम तो करते हम आई ट्वेंटी ले आते.. मीनाक्षी जी से मिलकर हमें भी ठीक वैसा ही लगा जैसा आप ऊपर लिख चुकी है.. बहुत ही जिंदादिल पर्सनेलिटी है..
अंकित बाबु से जब हम मिले तो हमारा भी उस से पहले कोई कम्युनिकेशन नहीं था.. पर मिलके बहुत अच्छा लगा.. जैसा आपने कहा पड़ी भोलापन अभी भी बरकरार है..

अच्छी लगी ये पोस्ट

डॉ .अनुराग said...

सच कहूँ तो अच्छा है के तुम उन लोगो से मिली हो जो वैसे ही है जैसे सफ्हो में दीखते है ...वरना हमने तो कई असल चेहरे पिछले दिनों देख लिए खैर .....
मीनाक्षी जी का क्या कहूँ मुझे याद है एक बार बेजी की किसी पोस्ट पर मैंने टिपण्णी की थी की यार हमें कोई बुलाता नहीं..यू ए इ में फ़ौरन उनका मेल आ गया ...अपना सी इ भेज दो अनुराग .जान गया के वे अपने मन में ढेर सारा स्नेह छिपाए बैठी है ...अर्श तो शायर आदमी है ...आज के ज़माने में कम्बखत मिसफिट अगर कोई बिरादरी है तो शायर .ही है ....उम्मीद है वो जिंदगी ओर शायरी में बेलेंस बना कर चलते होगे ....अपने मेजर की माफिक ......राकेश जी ओर अंकित से मिलना खूब रहा .ओर ये शेर कसम से

रिश्तों मे एक बंदिश है,
हम आवारा अच्छे थे...!

दिल की बात कह गया ....लिखने वाले को हमारा सालाम अक्तूबर में हम भी श्रीनगर जा रहे है ..अमूमन किसी शहर में जाकर ब्लोगर के फोन का दरवाजे पे दस्तक नहीं देते .....पर मेजर से जरूर मिलेगे .....दिली तमन्ना है

mark rai said...

आकाश को देख रहा हूँ । कोई छोर नही दीखता । इतना फैला हुआ है ...... डर लग लगता है ।
सोचता हूँ । हमारे अलावा इस ब्रह्मांड में कही और जीवन है ???
......सजीव शब्द चित्रण...

दर्पण साह said...

bahut accha tha poora tour...
padh ke hi jab itna maza aaya to...
kaash aapse pehle mulakaat hui hoti to arsh ke madhyam se aapse bhi mil lete !!

par agli baar dilli aaiyen to mulaquat due !

promise?

अजित वडनेरकर said...

बहुत अच्छा लगा आपका अपनों से मिलने का किस्सा। मीनू दी तो हैं ही वैसी, जैसा आपने लिखा है।

रंजना said...

ऐसी खुशियों से दामान सदा भरा रहे तुम्हारा...यही दुआ है...

बड़े ही रोचक अंदाज में रिपोर्टिंग की है तुमने....वाह !

Abhishek Ojha said...

आप तो कई लोगों से मिल लेती है. ऐसी मुलाकातें तो सुखद होंगी ही, जब अपने जैसे लोग हो तो....

sanjay vyas said...

जिन लोगों से परिचय नहीं था वे भी आत्मीय से लगने लग गए.ये आपके बात कहने का जादू तो है ही उससे ज़्यादा विशुद्ध और प्रांजल अपनत्व का आपका गुण है.आपकी लेखन और दीगर विषयों पर सलाहें यदा कदा किशोर जी के ज़रिये पहुँचती रहती हैं.
इस आलेख को हम तक पहुंचाने का शुक्रिया.

राकेश जैन said...

उनसे हुई १ मुलाकात का किस्सा,
जिंदगी उतनी ही थी,
या वो हुआ था जिंदगी का हिस्सा.
पल भर ठिठक गए थे,\
नयन दीदार को,
फिर उसने उलेड़ दिया स्नेह-प्यार को....

तुम ही कहो कि मिले खुदा तो क्या होगा,
तुझसे मिलने पे मेरा वही हुआ होगा.

रोती थी आँख रात कि ये किस्सा अजीब tha.
देखा उसे था आज दिन जो, कबसे करीब था..

उसको था अफ़सोस कि छोटी थी मुलाकात ये,
मैं हँसता,रहा कि,इतना क्या कमती नसीब था,
यूँ ही रखूं दुआ, कि फिर मुलाक़ात हो,
इस बार हुआ मेरा कहा
.अब उसकी पूरी मुराद हो..

Manish Kumar said...

इस विस्तृत भागमभाग रपट के लिए धन्यवाद। आशा है,जिस कार्य के लिए आप दिल्ली गई थीं उसकी चर्चा आप अगली पोस्ट में करेंगी। आडिओ का साउंड लेवल कम है इसलिए साफ समझ नहीं आ रहा।

प्रकाश पाखी said...

कंचन जी,
आपकी पोस्ट पढ़ कर ऐसा लगरहा था कि जैसे मैं आपके साथ मौजूद था.बाँध के रख दिया...स्नेह कैसे अमूर्त होते हुए भी रिश्ते गढ़ लेता है.मन में आया कि काश मैं भी इस परिवार का सदस्य होता.वैसे हिंदी ब्लॉग परिवार के और गुरुदेव की पाठशाला के तो आप सर्वप्रिय सदस्य है ही...और सीनियर और रेगिंग की धमकी भी खूब चली..अर्श भाई !डरना पड़ता है..वैसे जूनियर के प्रति काफी सॉफ्ट कोर्नर है आपके मन में...मेरी तुकबंदी पर सब गुरु भाई वाट लगा रहे थे तो आपने ही सहानुभूति दर्शाई थी...!
पर,सच में अभिभूत और भावुक करदेने वाला वर्णन था.
प्रकाश

manu said...

milnaa to mujhe bhi thaa ...
bas ...

rah hi gayaa....

नीरज गोस्वामी said...

आज के इस दौर में एक अच्छा इंसान मिलना मुश्किल होता है तुम भाग्यशाली हो जिसे इतने शालीन इतने सारे अपने एक ही जगह मिल गए...अंकित से आज बात हुई बता रहा था की तुमसे मिल कर आया है...ख़ुशी उसकी बात से झलक रही थी...क्यूँ न झलके तुमसे सच्चे अच्छे इंसान भी तो किस्मत वालों को ही मिलते हैं...

नीरज
पुनश्च: आज सुबह गुरूजी के मेसेज ने एक बार तो दिल की धड़कन बंद ही कर दी थी ये बता कर की गौतम गंभीर रूप से घायल है लेकिन उसके आधे घंटे बाद जब उन्होंने बताया की वो घायल तो है लेकिन ठीक है और तुमसे उसकी बात भी हुई है...तब जा कर जान में जान आयी....वो जल्द स्वस्थ हो कर लौटे ये ही इश्वर से कामना करते हैं...

शरद कोकास said...

यह कला तो अद्भुत है आवाज़ भी चित्र भी सब कुछ इतनी दूर से हमारे डेस्क टॉप पर , वाह ।

Anonymous said...

यह तो आंखों देखा हाल था। धन्यवाद।
वैज्ञानिक दृ‍ष्टिकोण अपनाएं, राष्ट्र को उन्नति पथ पर ले जाएं।

Naveen Tyagi said...

sabse milkar achchha laga.

Naveen Tyagi said...

sabse milkar achchha laga.

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत शानदार पोस्ट . इष्ट मित्रों एवम कुटुंब जनों सहित आपको दशहरे की घणी रामराम.

"अर्श" said...

सच में पहली बार सुन रहा था ... हलाकि मैं बनस्पति बिज्ञान का विद्यार्थी रहा हूँ मगर बतुनियों की खेती वो भी मुजस्सम वाकई पहली दफा देख रहा था ,.... बहुत सारी खेतिओन के बारे में पढा था मगर इसे देख कर तो सतब्ध रह गया था ... सच में पहली बार आपको चुप होते देखना अपने आप में भाग्यशाली समझ रहा था और महसूस भी कर रहा था ... मगर क्या ये महज संयोग भर था ...? आपसे मिला अपने आप में मेरे लिए भाग्य की बात थी ... कैत्च कैसे नहीं करता आपको खुद को जो बोल्ड करना था ... और हाँ गुलाब जितना खुबसूरत होता है उससे कहीं ज्यादा वो अपने खुशबु के लिए मशहूर है दुनिया में इसलिए एक गुलाब के लिए ढेरो गुलाब वाली बात कही थी ... काजू की कतली अभी तक मुह में पानी आता है और उसका मीठापन महसूस करता हूँ.. चिकन वाला कुरता पहाना और आपको बहुत याद किया ... ऑटो में बैठ कर जाते हुए आपको अपने इतने नाझ्दिक पाया जब आपने कहा के मैं अपनी बात को सही तौर से सामने वाले के पास नहीं रख पता हूँ .... राकेश भाई से मिलाना अपना अलग ही आनंद था ... बीजू का स्टाइल अपने आप में कमाल ... इस लडके के बारे में कुछ भी कहना मेरे लिए मुमकिन नहीं है निशब्द कर दिया था मुझे इसने ... आपका जबरदस्ती रस्गूले खिलाना और मीनू जी से मिलना हर बात तो सुखद थी... अगर लिखने लागुन तो एक पोस्ट लिख दूँ उस दिन के वाकये पे ... मगर आपके पोस्ट की अवहेलना नहीं करना चाहता ... बस ... आप हमेशा वेसे ही हस्ती मुस्कुराती रहे यही अल्लाह मियाँ से दुया करूँगा...

मैं खुश हूँ के तुने मुझे हाशिये पे रक्खा है
कम से कम वो जगह तो पूरी की पूरी मेरी है ...


अर्श

Ankit said...

नमस्ते दीदी,
काफी दिनों बाद टिपण्णी देने के लिए आ रहा हूँ.........कारन तो आप जानती ही है, एक बार पहले पढ़ी थी पोस्ट मगर पूरी नहीं.
आपने अपने लफ्जों से कितना सजीव बना दिया है मुलाक़ात के लम्हों को. लग रहा है की आपके साथ मैं भी दिल्ली की सैर कर आया.
और...........चोरी छिपे मेरी रिकॉर्डिंग भी कर डाली (खुफिया ऑपरेशन). आपने इतने सारे लोगों को स्नेह मुफ्त में दिलवा दिया मगर इसके लिए आपका शुक्रिया अता नहीं करूँगा क्योंकि "...तेरा ये शुक्रिया मुझे पराया करता है."
आप सब से मिला असीम प्यार एक यादगार फोटो की तरह दिल की एल्बम में कैद हो गया है.

गौतम राजऋषि said...

तुम जब भी रिश्तों पे लिखती हो, तुम्हारी लेखनी अपने चरमोत्कर्ष पे होती है...ये रपट भी उसी चरमोत्कर्ष का एक बेहतरीन उदाहरण है।

अंकित के शेरों ने हैरान कर दिया है और उसके टेबल पे सजे "छप्पन भोग" ने बेचैन। विगत दो हफ़्तों से हस्पताल का खाना खा-खा कर वैसे भी ऊब चुका हूं। तुम समझ सकती हो पूरियों भरी थाल मेरा क्या हाल कर रही होगी...

और तुम अपने खानदान की मितभाषियों में से हो?????????????????? हे ईश्वर..!!!

सौ बातों की एक बात जो अर्श के पोस्ट पे भी कहना चाह रहा था इस बेमिसाल हाशिये वाले शेर को लेकर। तो तस्वीर और शेर में विरोधाभास है बहन मेरी...तुमदोनो की इकट्ठा वाली तस्वीर में अर्श द्वारा लिया गया स्पेस और तुम्हें एक कोने में सिमटा देखकर इस अचरज में हूं कि हाशिये पे वास्तविकता में है कौन-तुम या अर्श...?????????? :-)

@प्रकाश,
सुन रहे हो क्या?

कंचन सिंह चौहान said...

Kancha ji aapke blog pe comment nahi ho pa raha... please apne blog main daal levein.Tuesday, 6 October, 2009 12:05 PM
From: This sender is DomainKeys verified"Darpan Sah" darpansah@gmail.com Add sender to ContactsTo: kanchan_chouhan2002@yahoo.com

@Gautam Sir main arsh se kehkar aaiya tha ki jiska padla bahri hoga main uski taraf ..... ...par wakai arsh ji dwara liye gaye space ko dekh kar to main arsh bhai ki taraf hoon.... ...arsh bhai sahi keh rahe ho !! kya kaha kuch nahi kaha? To jo bhi kahoge sahi hi kahoge.

aakhir jiski 'Space' uksi 'bhens' (jiski laathi uski bhens wahi beh'r par) aur kanchan ji se compitition karne ka man ho raha hai kya hai ki zayada baat karne ki aadht to humeni bhi hai nahi !! gautam ji aapke aane se hamare blog jagat main phir bahar aa gayi aur ek ke saath ek free ki traz par 'Tom' ko bhi saath laiye. Hamara chota sa blogiya parivaar yun hi fale fooley (fooleeeyyy) Amin, Shumma -Min !!

--
Best Regards.
Darpan Sah 'Darshan'
http://darpansah.blogspot.com

पुनीत ओमर said...

लगा ही नहीं की किसी और की जिंदगी के कुछ लोगों के बारे में पढ़ रहा हूँ.. सब अपना अपना सा लगा.
'गुलाब' वाला उत्तर पढ़कर मजा आया. इस खेती की और कौन कौन सी फसलें बाकी हैं . उनसे भी मिलने का इन्तेजार रहेगा. एक बात जो समझ नहीं आई वो ये की जब लोग इस तरह से काफी समय बाद मिलते हैं वो भी बहुत कम समय के लिए तो उस वक्त भी उनको शायरी बनाने का और बोलने का वक़्त मिल जाता है? जो भी हो, हमें क्या.. पढ़कर मजा आया.
ऐसे घर के माहौल में पकवानों से सजी मेज देख कर थोडा बहुत यादों का खाका भी उभर आया. खैर.. मैं जितने वक्त नोएडा रहा, तब तो आपको एक बार भी मौका नहीं मिला दिल्ली जाने का.. बड़ी नाइंसाफी हुई ये तो मेरे साथ.

Unknown said...

दौलत से न ललचाएँ हम, ताकत से न घबराएँ हम
दोस्तों हम आज भी दुनिया में बस प्यार के मारे हैं
(इसी प्यार के) बहुत अच्‍छा लगा। सुबह से कंचन दी! आपका ही ब्लॉग खोला है और 4 बजने को है दूसरा (ब्लॉग) नहीं देख सका।

मीनाक्षी said...

इतने दिनों बाद ब्लॉग जगत की तरफ रुख हुआ तो बहुत कुछ खुशगवार जानने समझने को मिला...हैरानी है कि यह पोस्ट कैसे नज़र में न आई...नज़र में आई तो एक और खुशखबरी लाई...तुम्हें खूब बधाई और प्यार के साथ साथ अर्श-माला को सुखमय जीवन के लिए ढेरों आशीर्वाद.