नित्य समय की आग में जलना, नित्य सिद्ध सच्चा होना है। माँ ने दिया नाम जब कंचन, मुझको और खरा होना है...!
Monday, March 16, 2009
"मुझे मदद चाहिये तुम्हारी"
आती हुई लहर ने किनारे से बेचैनी के साथ कहा
"मुझे मदद चाहिये तुम्हारी"
किनारे ने स्वागत के स्वर में पूँछा
"किस चीज में"
"दूसरा किनारा पाने में..........!"
लहर ने और बेचैन हो कर कहा
किनारा शांत....!
लहर के आने से आये भीगेपन में
कुछ खारापन मिल गया था,
मगर वो चुप था।
उसने खुद को किया और दृढ़
और पत्थर....!
लहर उससे अपनी भावना के वेग में टकराई,
और उसी वेग से क्रिया प्रतिक्रिया के नियम से
पीछे लौट आई
दूसरे किनारे के पास
लहर खुश थी....बहुत खुश...!
बिना इस अहसास के,
कि पीछे छूटा किनारा,
अब भी पत्थर बना बैठा है।
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47 comments:
बहुत ही सुन्दर व भावपूर्ण कविता लिखी है।
घुघूती बासूती
बहुत सुदर रचना लिखी है आपने ... बधाई।
आधुनिक कविता छाया को न पकड़ते हुए उसके तमाम रंगों से आत्म साक्षात्कार करती हूई आरोहण कर रही है, आपके शब्दों ने भी उजाले और अँधेरे की सभी खूबसूरतियों को उकेरा है शब्द ढूँढ रहे हैं लहरों का तटों से वार्तालाप... बेहद सुन्दर !
सुन्दर भाव अभिव्यक्ति
क्या खबर दूसरा किनारा भी पत्थर ही हो..यह तो लहर को उससे टकराने पर पता चलेगा
वाह ! बहुत खूब लिखा आपने। वैसे बहुत दिनों के बाद कोई कविता पढ़ने को मिली आपकी।
वाह जी बहुत अच्छी मनोभिव्यक्ति
---
गुलाबी कोंपलें
sunder havpurn abhivyakti
कंचन जी बहुत खूब । भावाभिव्यक्ति अति सुंदर ।
बहुत खूब!!!
बहुत खास है
किनारे के पत्थर होने का और लहर के भावुक होने का जो अहसास है! :)
लाजवाब रचना...आपने तो कमाल कर दिया...वाह.
नीरज
लहर खुश थी....बहुत खुश...!
बिना इस अहसास के,
कि पीछे छूटा किनारा,
अब भी पत्थर बना बैठा है।
बहुत अच्छा। ये पंक्तियां खास पसंद आईं।
किनारे को गर किनारा चाहिए
नहीं अब दरिया दुबारा चाहिए
ओ मेरी दामन की लहरों
किसे अब यहाँ ठिकाना चाहिए
दरिया और लहरें निकल जायेंगे
दोनों किनारे भी मिल जायेंगे
बचेगी फकत माटी इस राह पे
कहाँ अब किनारे भी बच पायेगे ...
कंचन जी ,किनारों की मृग तृष्णा में फंसी लहर का बड़ा सुन्दर वर्णन आपने किया है ...अच्छा लगा ,बधाई ...
सुन्दर भाव अभिव्यक्ति...
सिमित शब्दों में लहरों के माध्यम से बड़ी ही गहरी बात कही आपने.....
सुन्दर रचना के लिए आभार.
बहुत सुन्दर लिखा है आपने ..सुन्दर अभिव्यक्ति
बहुत सुँदर अभिव्यक्ति रही कँचन जी ..और लिखेँ
सस्नेह,
- लावण्या
आपकी रचना अपने मनोभावों को बखूबी कहती है
शायद कोशिश कर रहा हूँ कविता की थाह पाने की....उस सूत्र को पकड़ने की जो तुम कहना चाह रही हो....वैसे भी तुम्हारी पिछली पोस्ट पे पूछे सवाल का जावाब देना है मुझे...साहिल मगर इन लहरों के बगैर भी उदास होते है कंचन...दोनों ही जरूरी है..एक दुसरे के लिए ...समझ लो साहिल को भी लहरों की फितरत मालूम है....फिर भी
लहर खुश थी....बहुत खुश...!
बिना इस अहसास के,
कि पीछे छूटा किनारा,
अब भी पत्थर बना बैठा है।
Bhot sunder....!!
बहुत सूंदर भावाभिक्ति. शुभकामनाएं.
रामराम.
इसको पढ़कर अपनी ही ग़ज़ल का एक शेर याद आ गया -
घरौंदों का नसीब तो बस टूटना है
समन्दर की लहर क्या ऐसा सोचती होगी ?
सुंदर भाव को कमाल के शब्दों से अद्भुत सा लिखा है आपने। हमारे वश में नही इसकी थाह लेना। पर दिल खुश हो गया पढ़कर।
पत्थर, पत्थर बना बैठा है ... ये उसकी मजबूरी है ये उसकी ख़ुशी .... पता नहीं. पानी का काम बहना है ..... उसकी ख़ुशी शायद इसी में है ...
बहुत अच्छा लिखा है.
कंचन जी...मैं तो अवाक सा जाने कितनी बार पढ़ गया आपकी इन पंक्तियों को....
आपकी लेखनी का तो शुरू से ही कायल रहा हू~म जब से ब्लौग पर आने लगा, किंतु ये सशक्त लेखनी इतनी तीव्र और पैनी है कि...उफ़्फ़
उम्दा! ये तो था पहला शब्द जो दिमाग़ में आया.. अनुराग जी का कमेंट टोपिंग्स कि तरह रहा.. बड़ा काम आया.. इस बार कि लिखावट शानदार है
कंचन जी रचना सुन्दर है !ऎसी ही कविताएं हमें पढवाती रहें !
बहुत सुन्दर रचना
लहर खुश थी....बहुत खुश...!
कंचन जी,
उम्दा रचना, सुँदर अभिव्यक्ति!
कमाल का लिखा है...लहरों और साहिल का ये बतियाना दिल के बेहद करीब लगा.
घुघूती जी, संगीता जी, विनय जी, महक जी, नीशू जी, रचना जी, नीरज जी, रवींन्द्र जी, महेंद्र जी, रंजना जी, रंजू जी, लावण्या दी, अनिल जी, हरकीरत जी, ताऊ जी, सिद्धेश्वर जी, सुशील जी, कुश जी, अल्पना जी, आलोक जी, अल्पना जी पूजा जी आप सभी का धन्यवाद
किशोर जी...आपने जिस तरह समीक्षा की, वाकई इतना मान देने लायक भी नही थी मेरी कविता, परंतु फिर भी आप ने दिया इस हेतु धन्यवाद..!
मोहिन्दर जी दुआ कीजिये कि मेरी लहर जहाँ भी जाये उसे वही स्वागत, वही भीगी संवेदना मिले जो पहली लहर के पास मिली...! मैं अपनी लहर को पथराए किनारों के पास जाने की कल्पना से ही सिहर जाती हूँ...! वो जहाँ रहे, अपनी चंचलता बरकरार रखे। :)
मनीष जीअसल में हूँ तो मैं मूलरूप से कवयित्री ही, लेकिन सोचती हूँ लोग बोर ना हो जायें, इसलिये गैप देती रहती हूँ :)
अभिव्यक्ति के माध्यम से मिला दर्शन अच्छा लगा
दोनों किनारे भी मिल जायेंगे
बचेगी फकत माटी इस राह पे
वाक़ई सच तो यही है
गौतम जी आप जो भी कहें हम तो आपकी लेखनी के मुरीद हैं।
और अब बात उन दो टिप्पणियों की जो मेरे दिल को छू गईं....! सबसे बड़ी और सबसे सही बात अनुराग जी की कि
साहिल मगर इन लहरों के बगैर भी उदास होते है कंचन...दोनों ही जरूरी है..एक दुसरे के लिए ..
क्या बात कही अनुराग जी, ये लहरें हैं तो कम से कम सोचने को कुछ तो है, दूसरे किनारो तक उन्हे पहुँचाने का लक्ष्य तो है..उनके जाने के बाद सोचने को, उनके आने पर मिली नमी तो है..वरना तो किनारे बहुत पहले पत्थर हो गये होते
और दूसरी बात मीत जी की
पत्थर, पत्थर बना बैठा है ... ये उसकी मजबूरी है ये उसकी ख़ुशी .... पता नहीं.
ये दूसरा सच है, कि कोई चाह कर भी अपनी फितरत नही बदल सकता और जिसे नही बदल सकता उसे अपनी मजबूरी नही खुशी ही मानना चाहिये....!!!!!!!!!!!!!
कंचन ji
सुंदर अभिव्यक्ति है शब्दों की इस रचना मैं, इसके बारे में इतनी सुंदर सुंदर प्रतिकिर्या पढ़ने को मिली है की और कुछ कहना जैसे सूरज को दीपक दिखाने वाली बात है
आपने बहुत सुन्दर कविता लिखी है, मैं तो स्वयं के लिए कुछ शब्द जोड़ लेती हूं और उनकी भी आपने तारीफ़ की तो बहुत अच्छा लगा.
बेहतरीन . दिल छूने वाली रचना.
और उसपर लगाया गया चित्र .
समझ नहीँ पा रहा कि चित्र बाद मेँ लगा या कविता.
या दोनोँ साथ- साथ ?
अब इस पर क्या कहूँ?? लहर...पत्थर..किनारा सब तो अपने भीतर ही पाता हूँ...क्रिया भी और प्रतिक्रिया भी...इस सुंदर प्रस्तुति के लिये आभार।
बहुत ही सुन्दर रचना. लगता है लहर कि यही नियति होती है. आभार.
लहर के आने से आये भीगेपन में
कुछ खारापन मिल गया था,
वाह कंचन जी वाह!
आज तक तो लोग मीठेपन की बातें किया करते थे किसी के आने पर बदलते समय के साथ लगता है यह तो हाथी का दिखावटी दांत हो गया है और जो हकीकत बन चुकी है वह आपने उपर्युक्त दो पंक्तियों में बहुत खूबसूरती से बयां कर दिया है.................
बधाई! बधाई!........................
चन्द्र मोहन गुप्त
किनारे ने स्वागत के स्वर में पूछा ..
किस चीज़ में
दूसरा किनारा पाने में.......!
वाह ! वाह !!
मन के अन्तरंग भाव की कोमल-सी दस्तक ....
प्रकृति के शाश्वत नियम का
एहसास और एहतराम ....
एक-एक शब्द
काव्य की सम्पूर्णता और गरिमा को
व्यक्त करता हुआ
ह्रदय की कोमल अनुभूतियों से अनुपम साक्षात्कार करवा पाने की सफल कोशिश ...
बहुत-बहुत बधाई . . . . .
---मुफलिस---
बहुत प्यारी कविता रची है आपने कंचन जी
और आपके स्नेह और दुआ के लिए बहुत बहुत शुक्रिया
--
गुरुप्रीत सिंह
Gehara arth liye hue aapki yah kavita bahut achchi lagi.Badhai.
Bahut achchi lagi aapki kavita.
लहर उससे अपनी भावना के वेग में टकराई,
और उसी वेग से क्रिया प्रतिक्रिया के नियम से
पीछे लौट आई peechey chor kar dher saaraa khaaraapan..
खूबसूरत रचना। वाह। कहते हैं कि-
नजरें बदलीं तो नजारे बदल गए।
कश्ती ने रूख मोड़ा तो किनारे बदल गए।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
aapki ye post padhne ka aaj hi mauka mila.........hriday ki ananttam gahraiyon ki thah kab koi pa saka hai, sirf yahi kahna chaungi.lajawaab.
I apologise, but, in my opinion, you commit an error. Let's discuss. Write to me in PM, we will talk.
anonymous se discuss karne ka tareeka ?????
I join. It was and with me. Let's discuss this question. Here or in PM.
someone in my family wants me to make a video for them. Its on a sony mini disc. The person lives in canada with the sony Handycam and i cant use that to hook up to computer and get video off that way. so i have about 8 disc i need to get video off of and use on adobe premiere and make the movie. any suggestions on what program i should use? any help would be apprecciated. thanks
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