१४ अक्टूबर को हमने उनका ७५वाँ जनमदिन मनाया, मैने बहुत दिन से सोच रखा था कि उस दिन की पोस्ट मेरी माँ के नाम रहेगी, लेकिन क्या करें ? सर्वर उसी दिन डाउन होना था।
मेरी माँ .... जो अक्सर कहती हैं कि " मेरे पिता ने मुझे आखिरी शिक्षा ये दी है कि तुम ये कभी मत सोचना कि किसी ने तुम्हारे साथ क्या किया ? अरे ये तो उसकी मर्जी है, तुम हमेशा अपना कर्तव्य करना" और मेरे लिये बिना कहे ही ये उनकी पहली सीख हो जाती है।
मेरी माँ..जिन्होने कभी मुझे सिखाया तो नही लेकिन मैने उन्ही से सीखा कि रूढ़ियों और संस्कारों में क्या अंतर होता है...! मेरी माँ जो मुझे बहुत कमजोर समझती हैं लेकिन मजबूत होना मैने उन्ही से सीखा है,... मेरी माँ...जिन्होने कहा कि परीक्षा में नकल कर के पास होने से अच्छा है कि फेल हो जाना और हाँ दोस्तों की कापियों से देखना भी नकल ही कहलाता है...! और मैं कक्षा ८ की बोर्ड परीक्षा में जब ब्लैकबोर्ड पर प्रश्न हल कराये जा रहे थे तो भी नकल करने की हिम्मत नही कर पाई....! मेरी माँ जो अक्सर बहुत हिम्मती होती हैं, लेकिन बात बात पर रो देती हैं...! मेरी माँ जो छोटी छोटी गलतियों पर भले बहुत नाराज हो जायें लेकिन मुझसे हुए बड़े नुकसानों को हमेशा नॉर्मली लिया है। मेरी माँ..जिसने मुझे स्वतंत्रता और उच्छृंखलता में अतर समझाया।
वो मुझसे कहती हैं कि इतनी भावुकता ठीक नही, लेकिन मैं जानती हूँ कि ये भावुकता मैने उन्ही से पाई है। मैने देखा है कि जब घर के खर्च बड़ी मुश्किल से चलते थे, तब भी अगर पड़ोस की चाची उनसे उधार माँगने आ जाती तो अम्मा झट किसी को गोमती बहन जी के घर भेज के खुद उधार माँग लेतीं लेकिन उन्हे वापस नही करतीं।
बस्ती के माँझा क्षेत्र के जिस जिले से वो संबंध रखती हैं वहाँ आज भी नारी शिक्षा का स्तर बहुत अधिक नही बढ़ा है, तो आजादी के पहले की तो बात ही छोड़िये.. १५ साल की उम्र से ही उन्होने पढ़ाना शुरू कर दिया। फिर हरदोई आ कर सीटीसी की ट्रेनिंग की, जो उस समय टीचर बनने के लिये किये जाने वाले प्रशिक्षण का नाम था। मैं अक्सर उनमें कुशल नेत्री और वकील के गुण देखती हूँ।
ये सारे रूप मैने अक्सर ही देखे हैं उनके लेकिन जो रूप मैने आंध्रा प्रवास के समय देखा वो बहुत अलग था। ५ मई २००१ को मेरा परिणाम आया, अम्मा ने आँसुओं के साथ मुझे ढेरों आशीर्वाद दिये। खूब प्रसाद बाँटे। मैं मन ही मन तैयारी करती रही दक्षिण के किसी प्रदेश की ज्वाइनिंग आने की और उन्होने मेरे विचारों मे कोई दखल नही दिया। लेकिन ९ नवंबर २००१ को जब रिज़र्वेशन के लिये भईया जाने लगे तो उनका रूप ही बदल गया... वो रोती जाती थी, रोती जाती थीं, भईया से पूँछती " तुम सच में उसको इतनी दूर ज्वाईन करा दोगे?" मुझसे कहती "तुम और रिज़ल्ट का इंतजार कर लो" और मैं कहती " अगर नही हुआ फिर से तब क्या करेंगे अम्मा? आपको ज्वाईन नही कराना था तो मुझे फार्म क्यों भरने देती थीं, किताबें क्यों मँगाती थी..?"
" इसके अलावा तुम्हारा मन लगाने के लिये क्या करते, हम सोचते थे कि तुम इसी सब में व्यस्त रखो अपने आप को? और फिर हमने सोचा कि जब कोई तुम्हे ज्वाईन नही करायेगा, तो बाद में समझा देगें? लेकिन अब हमारे पास इतना कलेजा नही है कि तुम्हे ईतनी दूर भेज दें।"
वो कहतीं "मेरी स्थिति दशरथ वाली हो गई है, जैसे दशरथ ने कहा था कि राम को वन दिखा कर वापस ले आना वैसे ही हम चाहते हैं कि कंचन को ज्वाइन करा के फिर वापस ले आओ, उसे संतोष हो जाएगा कि उसने नौकरी कर ली"
वो हर एक से इस उम्मीद से कहतीं कि शायद कोई उनका साथ दे, लेकिन सब उन्हे प्रैक्टिकल होने को कहते। उन्होने रो रो के मुझे विदा कर दिया..! मैं तीन महीने के लिये गई थी लेकिन उनकी हालत सुन के १ महीने में ही मुझे १५ दिन के लिये छुट्टी ले कर वापस आना पड़ा। और दिन रात रोते रोते वो अवसाद (डिप्रेशन)में चली गईं। हालत ये थी कि अब ना वो अधिक रोती थीं, न हँसती थीं और न ही नाराज होती थीं। जो कह दो बस यंत्रवत करती जाती थी। २ महीने में ही मैं मेडिकल लगा कर चली आई। और ४ महीने तक रही। जब दिन रात साथ रह के उन्हे ये विश्वास दिलाया कि मैं कर सकती हूँ, इसके अलावा कोई चारा भी नही है और न किया गया तो जिंदगी बहुत खराब हो जायेगी..तो फिर धीरे धीरे वो फिर से सामान्य हुईं।
मुझे हमेशा ये लगता था कि मै सब से छोटी हूँ तो माँ मुझे सब से कम चाहती हैं, लेकिन इसके बाद पता चला कोई माँ किसी भी बच्चे को कम नही चाहती, वो बस ये चाहती है कि मेरा बच्चा बिलकुल परेशान न हो मैं उसके सारे दुख ले लूँ..! वो खुश रहे, हमेशा खूश..!
ये एक कविता जो आंध्रा ज्वॉइनिंग के ५वें दिन मैने रो रो के लिखी थी और यहाँ अम्मा कह रही थी "आज वो बहुत बेचैन है,उसका हाल ले लो, हमें लग रहा है कि वो बहुत रो रही है।" तब तक कोई नं० नही था जहाँ बात की जा सके, लेकिन दिल ने दिल से बात की बिन चिट्ठी बिन तार।
सुबह सवेरे आँख खुली
और तेरी सूरत नज़र ना आई
माँ तब याद तुम्हारी आई।
साँझ ढले जब घर लौटी
और तू चौखट पर नज़र ना आई,
माँ तब याद तुम्हारी आई।
दुनिया भर की धूप लगी
और तेरी आँचल छाँव ना पाई
माँ तब याद तुम्हारी आई
आज थकन थी बहुत पैर में,
हमने सबको खूब बताया,
मगर आजबत्ती बुझने पर
कोई चुपके से ना आया,
तेरे हाथो की गर्माहट,
आज थकावट ने ना पाई
माँ तब याद तुम्हारी आई।
उनके विषय में एक बार में पूरा नही लिख सकती.. अगली पोस्ट में सुनाऊँगी उनका पसंदीदा गीत
क्रमशः
मेरी माँ .... जो अक्सर कहती हैं कि " मेरे पिता ने मुझे आखिरी शिक्षा ये दी है कि तुम ये कभी मत सोचना कि किसी ने तुम्हारे साथ क्या किया ? अरे ये तो उसकी मर्जी है, तुम हमेशा अपना कर्तव्य करना" और मेरे लिये बिना कहे ही ये उनकी पहली सीख हो जाती है।
मेरी माँ..जिन्होने कभी मुझे सिखाया तो नही लेकिन मैने उन्ही से सीखा कि रूढ़ियों और संस्कारों में क्या अंतर होता है...! मेरी माँ जो मुझे बहुत कमजोर समझती हैं लेकिन मजबूत होना मैने उन्ही से सीखा है,... मेरी माँ...जिन्होने कहा कि परीक्षा में नकल कर के पास होने से अच्छा है कि फेल हो जाना और हाँ दोस्तों की कापियों से देखना भी नकल ही कहलाता है...! और मैं कक्षा ८ की बोर्ड परीक्षा में जब ब्लैकबोर्ड पर प्रश्न हल कराये जा रहे थे तो भी नकल करने की हिम्मत नही कर पाई....! मेरी माँ जो अक्सर बहुत हिम्मती होती हैं, लेकिन बात बात पर रो देती हैं...! मेरी माँ जो छोटी छोटी गलतियों पर भले बहुत नाराज हो जायें लेकिन मुझसे हुए बड़े नुकसानों को हमेशा नॉर्मली लिया है। मेरी माँ..जिसने मुझे स्वतंत्रता और उच्छृंखलता में अतर समझाया।
वो मुझसे कहती हैं कि इतनी भावुकता ठीक नही, लेकिन मैं जानती हूँ कि ये भावुकता मैने उन्ही से पाई है। मैने देखा है कि जब घर के खर्च बड़ी मुश्किल से चलते थे, तब भी अगर पड़ोस की चाची उनसे उधार माँगने आ जाती तो अम्मा झट किसी को गोमती बहन जी के घर भेज के खुद उधार माँग लेतीं लेकिन उन्हे वापस नही करतीं।
बस्ती के माँझा क्षेत्र के जिस जिले से वो संबंध रखती हैं वहाँ आज भी नारी शिक्षा का स्तर बहुत अधिक नही बढ़ा है, तो आजादी के पहले की तो बात ही छोड़िये.. १५ साल की उम्र से ही उन्होने पढ़ाना शुरू कर दिया। फिर हरदोई आ कर सीटीसी की ट्रेनिंग की, जो उस समय टीचर बनने के लिये किये जाने वाले प्रशिक्षण का नाम था। मैं अक्सर उनमें कुशल नेत्री और वकील के गुण देखती हूँ।
ये सारे रूप मैने अक्सर ही देखे हैं उनके लेकिन जो रूप मैने आंध्रा प्रवास के समय देखा वो बहुत अलग था। ५ मई २००१ को मेरा परिणाम आया, अम्मा ने आँसुओं के साथ मुझे ढेरों आशीर्वाद दिये। खूब प्रसाद बाँटे। मैं मन ही मन तैयारी करती रही दक्षिण के किसी प्रदेश की ज्वाइनिंग आने की और उन्होने मेरे विचारों मे कोई दखल नही दिया। लेकिन ९ नवंबर २००१ को जब रिज़र्वेशन के लिये भईया जाने लगे तो उनका रूप ही बदल गया... वो रोती जाती थी, रोती जाती थीं, भईया से पूँछती " तुम सच में उसको इतनी दूर ज्वाईन करा दोगे?" मुझसे कहती "तुम और रिज़ल्ट का इंतजार कर लो" और मैं कहती " अगर नही हुआ फिर से तब क्या करेंगे अम्मा? आपको ज्वाईन नही कराना था तो मुझे फार्म क्यों भरने देती थीं, किताबें क्यों मँगाती थी..?"
" इसके अलावा तुम्हारा मन लगाने के लिये क्या करते, हम सोचते थे कि तुम इसी सब में व्यस्त रखो अपने आप को? और फिर हमने सोचा कि जब कोई तुम्हे ज्वाईन नही करायेगा, तो बाद में समझा देगें? लेकिन अब हमारे पास इतना कलेजा नही है कि तुम्हे ईतनी दूर भेज दें।"
वो कहतीं "मेरी स्थिति दशरथ वाली हो गई है, जैसे दशरथ ने कहा था कि राम को वन दिखा कर वापस ले आना वैसे ही हम चाहते हैं कि कंचन को ज्वाइन करा के फिर वापस ले आओ, उसे संतोष हो जाएगा कि उसने नौकरी कर ली"
वो हर एक से इस उम्मीद से कहतीं कि शायद कोई उनका साथ दे, लेकिन सब उन्हे प्रैक्टिकल होने को कहते। उन्होने रो रो के मुझे विदा कर दिया..! मैं तीन महीने के लिये गई थी लेकिन उनकी हालत सुन के १ महीने में ही मुझे १५ दिन के लिये छुट्टी ले कर वापस आना पड़ा। और दिन रात रोते रोते वो अवसाद (डिप्रेशन)में चली गईं। हालत ये थी कि अब ना वो अधिक रोती थीं, न हँसती थीं और न ही नाराज होती थीं। जो कह दो बस यंत्रवत करती जाती थी। २ महीने में ही मैं मेडिकल लगा कर चली आई। और ४ महीने तक रही। जब दिन रात साथ रह के उन्हे ये विश्वास दिलाया कि मैं कर सकती हूँ, इसके अलावा कोई चारा भी नही है और न किया गया तो जिंदगी बहुत खराब हो जायेगी..तो फिर धीरे धीरे वो फिर से सामान्य हुईं।
मुझे हमेशा ये लगता था कि मै सब से छोटी हूँ तो माँ मुझे सब से कम चाहती हैं, लेकिन इसके बाद पता चला कोई माँ किसी भी बच्चे को कम नही चाहती, वो बस ये चाहती है कि मेरा बच्चा बिलकुल परेशान न हो मैं उसके सारे दुख ले लूँ..! वो खुश रहे, हमेशा खूश..!
ये एक कविता जो आंध्रा ज्वॉइनिंग के ५वें दिन मैने रो रो के लिखी थी और यहाँ अम्मा कह रही थी "आज वो बहुत बेचैन है,उसका हाल ले लो, हमें लग रहा है कि वो बहुत रो रही है।" तब तक कोई नं० नही था जहाँ बात की जा सके, लेकिन दिल ने दिल से बात की बिन चिट्ठी बिन तार।
सुबह सवेरे आँख खुली
और तेरी सूरत नज़र ना आई
माँ तब याद तुम्हारी आई।
साँझ ढले जब घर लौटी
और तू चौखट पर नज़र ना आई,
माँ तब याद तुम्हारी आई।
दुनिया भर की धूप लगी
और तेरी आँचल छाँव ना पाई
माँ तब याद तुम्हारी आई
आज थकन थी बहुत पैर में,
हमने सबको खूब बताया,
मगर आजबत्ती बुझने पर
कोई चुपके से ना आया,
तेरे हाथो की गर्माहट,
आज थकावट ने ना पाई
माँ तब याद तुम्हारी आई।
उनके विषय में एक बार में पूरा नही लिख सकती.. अगली पोस्ट में सुनाऊँगी उनका पसंदीदा गीत
क्रमशः
28 comments:
आप को अपनी मां जी के जन्म-दिवस की बहुत बहुत मुबारकबाद. हम सब चिट्ठाकार मां जी की दीर्घ एवं स्वस्थ, खुशहाल एवं उत्साहपूर्वक जीवन की मंगल कामना करते हैं।
बहुत बहुत बधाईयां ----परमात्मा करे कि आप उन के साथ उन का 100वां जन्मदिन भी यूं ही मनायें।
पोस्ट आपने बहुत ही बढ़िया लिखी है --- लेकिन पता नहीं जब भी ऐसी पोस्टें देखता हूं तो मेरा वह यकीन एक बार और भी पक्का हो जाता है कि हिंदोस्तान की सभी मांएं बिलकुल एक जैसी हैं----कुछ भी फर्क नहीं है इनमें।
Happy birthday,once again to your dear mother!!- तुम जियो हज़ारों साल ...!!
आपकी माँ को जन्मदिन की बहुत बहुत बधाई । आपका लेख अच्छा लगा । लेख पढ़कर अपनी माँ, जो हर समय मन में बनी रहती हैं, की बहुत याद आई । वे बीमार हैं और मैं उनकी देखभाल करने नहीं जा सकती । हर समय यही बात मन को सालती है । परन्तु व्यावहारिक बनकर दूर से ही खोजखबर लेकर मन बहला रही हूँ।
घुघूती बासूती
दुनिया की सभी मांओं को सलाम
प्ढ़ कर अच्छा लगा, विल्बित बधाई
आगे की रचना का इंतजार है।
माताजी को जन्मदिन की बधाई... माँ होती ही ऐसी है !
आपकी माँ को जन्मदिन की बहुत बहुत बधाई ।
माताजी को जन्मदिन की बहुत बहुत शुभकामनाऍं।
सचमुम में मॉं होती ही ऐसी है। वे चाहती हैं कि वे हमेशा छतरी के समान अपने बच्चों की रक्षा करती रहें। लेकिन जब कुछ बच्चे बड़े हो जाते हैं, तो वे इस बात को भूल जाते हैं। आपकी माताजी शतायु हों और आप ऐसी ही अच्छी बेटी बनी रहे। आमीन........
सर्वर का डाउन होना, किसी के हृदय का प्रेम नहीं कम सकता, बस मन में भावना होनी चाहिए। हमारी तरफ़ से आपकी माताश्री को जनम दिवस की हार्दिक बधाई।
कंचन माताजी को मेरी ओर से भी बधाई दीजियेगा । किसी ने कहा है ना कि ईश्वर हर घर में नहीं जा सकता था इसलिये उसने मां को हर घर में भेजा ताकि वो मां के रूप में हर घर में पहुंच जाये । मुनव्वर राना की एक छोटी सी पुस्तक है जिसमें सारे शेर मां पर ही कहे गये हैं । अगर कहीं से मिल सके तो अवश्य पढ़ना । मां तुझे प्रणाम
माँजी के जन्मदिन पर हार्दिक शुभकामनाएँ।
अच्छा लगा उनके बारे में आपकी यादों के बीच से गुजरना
कंचन जी ! आपका हर शब्द ह्रदय की गहराई से निकलता है !संवेदना और स्नेह का ऐसा अटूट गठबंधन है आपके पास जो सहज ही उपलब्ध नहीं होता !माँ के लिए इतना गहरा जुडाव बेटियाँ ही महसूस कर सकतीं है ,माँ तो माँ होती ही है !ईश्वर उनको सदा स्वस्थ और प्रसन्न रखे !
माँ को बधाई और बेटी को साधुवाद.
बहुत अच्छी पोस्ट!
एक शब्द मे कहूँ तो 'मातॄछाया' को प्रणाम!!
"माँ"
एक शब्द है जिसमेँ
सँसार के सारे अर्थ,
सारी विध्या
सारी खुशियाँ समाई हैँ ! -
आपकी माताजी को
मेरे स्न्ह नमन व
साल गिरह पर
बधाई व प्यार:)
- लावण्या
maa ko janmdin ki bahut bahut badhai...bahut achcha lag raha hai unke bare mein jaanna....aage aur bataiye.
कंचन जी
अलोक श्रीवास्तव जी की एक ग़ज़ल का शेर है:
"सारे रिश्ते- जेठ दुपहरी,गर्म हवा आतिश अंगारे
झरना दरिया झील समंदर,भीनी-सी पुरवाई अम्मा"
आप की पोस्ट पढ़ कर ये याद आ गया...माँ के बारे में जितना लिखें कम है क्यूँ की वो होती ही ऐसी है...आपने बहुत भावपूर्ण लेख लिखा है...आप की माताजी हमेशा स्वस्थ रहें और शतायु हों, इश्वर से ये ही प्रार्थना है.
नीरज
माँ जैसी कोई नही......आदरणीय माँ जी को मेरी ओर से शुभकामनाये दीजियेगा ....देरी के लिए मुआफी
साँझ ढले जब घर लौटी
और तू चौखट पर नज़र ना आई,
माँ तब याद तुम्हारी आई।
aaj ke khaas din behtareen post padhi kanchan.....
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति "माँ" के लिये , धन्य होगी माँ आपको जन्म देकर, सच-मुच आपकी सोच व लेख मे प्रभाव है ..... जितनी भी तारीफ हो, कम ही पडेगी!
खू ब सू र त पोस्ट
इससे खूबसूरत विषय और है ही नहीं
प्रणाम
मां के साथ आपको भी
नया ज़माना है कंचन
बच्चे कुछ भी याद नहीं रखते आजकल
साधुवाद
अन्यथा न लें
"MAA"
MAA ke vishaya me jitna bhi likha jaye kam hai,hamare janm ke pahle hi seham use kast dena shuru kar dete hai aur vo jeevn bharhame khushi.
अम्मा तेरी याद आयी,
कोरों पर थोड़ी सी नमी भी छलक आई,
जब देखा सामने रोटी सेंकती एक बूढ़ी माई,
कुछ तेरे जैसी ही सेंक रही थी रोटी वो,
बड़े लोए से छोटी-छोटी लोइयां बनाना,
पीढ़े पर घुमाकर गोल करना,
फिर पीढ़े पर पटकना,
रोटियां गोल,
बिल्कुल तुम्हारी सेंकी रोटियों की तरह।।
पता नहीं सुगंध कैसी थी,
क्योंकि मैं खड़ा था,
अपने किराए के कमरे की सबसे ऊपरी मंजिल पर,
और वह रोटियां सेंक रही थी,
जमीन पर उकडूं बैठ कर ।।
दिनों से खाना तो बहुत खाया अम्मा,
लेकिन नहीं सुनी यह आवाज-
भइया अऊर ले हव,
एक रोटी अउर लै लेव,
नहीं परोसा किसी ने आटा लगे हाथों से,
दाल या सब्जी,
नहीं मिली बहुत दिनों से तेरे,
चूल्हे से निकली आंच ।।
कितना दूर आ गया हूँ अम्मा,
चलते-चलते,
अब रो भी नहीं पाता हूँ अम्मा,
तुम्हें सामने न देखकर,
पहले कितना रोता था,
ऐंडियां रगड़-रगड़कर।।
शायद बड़ा हो गया हूँ,
इतना बड़ा कि छोटा पड़ने लगा हूँ,
अपने ही आंसुओं के लिए ।।।
तुम्हारा ऋषि
आपकी माँ को जन्मदिन की बहुत बहुत बधाई.
मां, तो आखिर मां है। हमारी तरफ से भी जन्मदिन की बधाई अवश्य दें।
आप सौभाग्यशाली हैं कि आपके सिर पर अब तक आपकी माँ का आशीष भरा हाथ है। ईश्वर करे वे सौ वर्षों तक यूं ही आपको आशीष देती रहें।
Maa ! shat-2 naman.
maa ka abhari hun jinki vajah se mere pas itni pyari didi hai.
di ..itna pyara kyun likhti ho ...???
Maa ! shat-2 naman.
maa ka abhari hun jinki vajah se mere pas itni pyari didi hai.
di ..itna pyara kyun likhti ho ...???
खुश रहो कंचन, और माँ का ध्यान रखो. खुशनसीब हो जो उनको देख पा रही हो ... हम प्रवासियों से पूछो ...
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