Wednesday, January 16, 2008

माँ,


यह कविता मेरी माँ ने जूनियर जागरण में पढ़ने के बाद मुझे कानपुर से भेजी है..किन्ही दिनेश जी जो कि स्नातक द्वितीय वर्ष के छात्र हैं, उनकी रची हुई कविता है ये.....!

कब्र के आगोश में जब थक के सो जाती है माँ,
तब कहीं जा कर, ज़रा थोड़ा सुकूँ पाती है माँ।

फिक्र में बच्चों की कुछ ऐसी घुल जाती है माँ,
नौजवाँ हो कर के भी, बूढ़ी नज़र आती है माँ।

रूह के रिश्तों की ये गहराइयाँ तो देखिये,
चोट लगती है हमारे और चिल्लाती है माँ।

कब ज़रूरत हो मेरी बच्चों को इतना सोच कर,
जागती रहती हैं आँखें और सो जात है माँ।

चाहे हम खुशियों में माँ को भूल जायें दोस्तों,
जब मुसीबत सर पे आ जाए, तो याद आती है माँ।


लौट कर सफर से वापस जब कभी आते हैं हम,
डाल कर बाहें गले में सर को सहलाती है माँ।

हो नही सकता कभी एहसान है उसका अदा,
मरते मरते भी दुआ जीने की दे जाती है माँ।

मरते दम बच्चा अगर आ पाये न परदेस से,
अपनी दोनो पुतलियाँ चौखट पे धर जाती है माँ।

प्यार कहते है किसे और ममता क्या चीज है,
ये तो उन बच्चों से पूँछो, जिनकी मर जाती है माँ।

10 comments:

Ashish Maharishi said...

मां

मीनाक्षी said...

बहुत भावभीनी रचना...तभी तो कहा गया है....ऐ माँ तेरी सूरत से अलग भगवान की सूरत क्या होगी....!

Anonymous said...

छोटी वय के इस बच्चे में बहुत संभावनाएँ छिपी हैं। शिल्प और वस्तु पर अच्छी पकड़ है। मार्मिक रचना।

पारुल "पुखराज" said...

aankhey bhar aayin......bahut bahut shukriya KANCHAN isey hum tak pahunchaaney kaa

Unknown said...

सच कंचन जी, ऐसी ही होती है मां...

जेपी नारायण said...

इसी तरह वाराणसी के एक किशोर ने दो लाइनें लिखीं और हिंदी साहित्य में अमर हो गया था।

दिल के फफोले जल उठे, दिल ही दाग से
इस घर को आग लग गई, घर के चिराग से।

....मां पर लिखी गईं पंक्तियां मन को ममत्व से भर देने वाली हैं। बहुत अच्छी रचना। बधाई।

अमिताभ मीत said...

ओह ! क्या कहूँ क्या हुआ ये रचना पढ़ कर. इस अल्पायु शायर को शुभाशिष. रुला दिया इस ने, लेकिन जो खुशी मिली, वो बता नहीं सकता.

Tarun said...

बहुत खूब, आपने माँ पर वो गीत सुना क्या फिल्म तारे जमीन पर का। वो भी बहुत सुन्दर और भावप्रिय है

कमाल है आपने काफी कुछ लिखा है लेकिन हमारा आना आज ही हुआ। अब हम क्या करें मुद्दतों बाद आज ही यूँ टहलने निकले अनजानी राहों पर :)

कंचन सिंह चौहान said...

आशीष जी, मीनाक्षी जी कविता जी, पारुल जी, रवीन्द्र जी नारायण जी, मीत जी एवं तरुण जी आप सी का धन्यवाद...और उस युवा होते बालक के लिये शुभकामनाएँ जिसने हम सब को अभिभूत किया....
तरुण जी! मैने वो गाना भी सुना है और फिल्म भी देखी है...दोनो ही निरुपम हैअ

Sharma ,Amit said...

Maa, is shabd mein saari duniya simat aati hai...