गीत है कल से अखिल भारतीय स्तर पर प्रदर्शित होने वाली सुधीर मिश्रा द्वारा निर्देशित फिल्म खोया खोया चाँद। अब फिल्म कैसी होगी ये तो कल ही पता चलेगा, लेकिन गीत ने मुझको बाँध लिया है।
चाँद से आगे जाने की ख्वाहिश और सितारों के फेर में पीछे रह जाने का ग़म.... एक आम सी बात लेकिन खुद के लिये खास महत्व रखती है और हर एसे पल में ज़रूरत महसूस होती है उस शख्स की जिससे हम कह सकें कि
आज हाथ थाम लो, एक हाथ की कमी खली।
हम सब जो बाहर से बहुत बहादुर दिखते हैं कहीं न कहीं बहुत कमज़ोर होते हैं, लेकिन बहुत ताकत मिल जाती है अगर अपने अंदर अहसास हो कि जब हम गिरने लगेंगे तो एक हाथ है जो हमें सम्हाल लेगा। और बस यही अहसास है जो हमें दुःखी होने पर सबसे बड़ा सहारा देता है। फिर वो हाथ चाहे जिस रूप में हो।
खैर फिलहाल तो सुनिये मेरे साथ ये गीत
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आज शब जो चाँद ने है है रूठने की ठान ली,
गर्दिशों में है सितारे बात हमने मान ली!
अंधेरी स्याह जिंदगी को सूझती नही गली,
कि आज हाथ थाम लो इक हाथ की कमी खली
क्यूँ खोये खोये चाँद की फिराक़ में, तलाश में, उदास है दिल,
क्यूँ अपने अपने आप से खफा-खफा ज़रा ज़रा सा नाराज़ है दिल
ये माजिलें भी खुद ही तय करे,
ये फासले भी खुद ही तय करे
क्यूँ तो रास्तों पे फिर सहम सहम सम्हल सम्हल के चलता है ये दिल
क्यूँ खोये खोये चाँद की फिराक़ में, तलाश में, उदास है दिल,
जिंदगी सवालों के जवाब ढूँढ़ने चली,
जवाब में सवालों की इक लंबी सी लड़ी मिली।
सवाल ही सवाल हैं सूझती नही गली,
कि आज हाथ थाम लो इक हाथ की कमी खली!
जी में आता है, मुर्दा सितारे नोच लूँ
इधर भी नोच लूँ, उधर भी नोच लूँ !
एक दो का ज़िक्र क्या मैं सारे नोच लूँ !
इधर भी नोच लूँ, उधर भी नोच लूँ !
सितारे नोच लूँ मैं सारे नोच लूँ
क्यूँ तू आज इतना वहशी है, मिज़ाज में मज़ाज़ है ऐ गम ए दिल
क्यूँ अपने अपने आप से खफा-खफा ज़रा ज़रा सा नाराज़ है दिल
ये माजिलें भी खुद ही तय करे,
ये फासले भी खुद ही तय करे
क्यूँ तो रास्तों पे फिर सहम सहम सम्हल सम्हल के चलता है ये दिल
दिल को समझाना कह दो क्या आसान है,
दिल तो फितरत से सुन लो न बेइमान है
ये खुश नही है जो मिला, बस माँगता ही है चला
जानता है हर लगी का, दर्द ही है बस इक सिला।
जब कभी ये दिल लगा, दर्द ही हमें मिला,
दिल की हर लगी का सुन लो दर्द ही है इक सिला !
क्यूँ नये नये से दर्द की फिराक़ में, तलाश में, उदास है दिल,
क्यूँ अपने अपने आप से खफा-खफा ज़रा ज़रा सा नाराज़ है दिल
ये माजिलें भी खुद ही तय करे,
ये फासले भी खुद ही तय करे
क्यूँ तो रास्तों पे फिर सहम सहम सम्हल सम्हल के चलता है ये दिल
क्यूँ खोये कोये चाँद की फिराक़ में, तलाश में, उदास है दिल,
कयूँ अपने अपने आप से खफा-खफा ज़रा ज़रा सा नाराज़ है दिल
ये माजिलें भी खुद ही तय करे,
ये फासले भी खुद ही तय करे
क्यूँ तो रास्तों पे फिर सहम सहम सम्हल सम्हल के चलता है ये दिल
11 comments:
वाकई!!
आम तौर पर मैं टी वी नही देखता पर कल टी वी में इस फिल्म का ट्रेलर और इस गाने के अंश देखकर आज सुबह सबसे पहले इस गाने को डाउनलोड किया और तब से अब तक सात आठ बार सुन चु्का हूं पर शायद मन भरा ही नही है!
बहुत अच्छा लगा गीत और साथ ही गिरते फिसलते उठ खड़े हुए फिर से :) धन्यवाद
वाकई बहुत अच्छा गीत है, लिखा भी सुंदर है और धुन भी मोहक, स्वानंद को सलाम
सच में… काफी अच्छा गीत है…। शुक्रिया यहाँ पेश करने का…।
सुन्दर और मधुर गीत है ।
प्यार और विश्वास एक दूसरे के पूरक हैं. पर फ़िर भी, कभी कभी दोनों एक साथ नहीं मिल पाते. गीत वाकई में अच्छा लगा..
संजीत जी, मीनाक्षी जी, सजीव जी, डिवान इण्डिया, ममता जी और पुनीत आप सबका धन्यवाद गीत पसाद करने के लिय। संजीत जी कुछ ऐसा ही मेरे साथ भी है कि टी०वी० पर देख कर जब एक बार डॉउनलोड किया तो दिमाग से उतर ही नही रहा था़ वैशे फिल्म भी मुझे उतनी ही अच्छी लगी।
bahut khoob
बहुत अच्छे हैं आपके गीत , मधुर-मधुर , साथ ही आपके ब्लॉग की प्रस्तुति भी प्रन्शंस्निये है .
लगता है आजकल आपको गीत संगीत सुनने का काफी वक्त मिल रहा है। अच्छी बात है। काफी दिनों बाद आ सका आपको ब्लाग पर। छमा कीजियेगा, लेकिन यह देखकर अच्छा लगा कि आप पूरी तरह सक्रिय हैं। धन्यवाद।
कुछ दिनों हालात के कारण नेट से परहेज़ करना पड़ा। हृदय गवाक्ष में आज देखा तो बहुत ही सुंदर गीत सुनने को मिले, उन ऊबने वाले 'धमधम' गानों के विपरीत।
'ये उम्मीद नहीं मरती जाने क्या खा कर आई है' बहुत ही मार्मिक कविता है। यह
पंक्तियां बहुत अच्छी लगी:
वो क्षण जो कुछ क्षणों मात्र को आये, और फिर ना आये,
जो बादल सुख भ्रांति बन कर छाये और फिर न छाये,
रात कहा करती है मुझसे अब वो सब ना लौटेगा,
पर ये बैरन भोर हमारी आस जगाने आई है।
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