
वो कहता है कि मैं दुनिया के लिये लिखती हूँ, कभी उसके लिये नही। जाने कितनी बार कहा है और मैं फिर भी नही लिखती। क्योंकि मैं अब भी नही समझ पाती कि उसके लिये कैसे लिखा जा सकता है, जिससे आपके २४ घंटे चलते हों। अम्मा अगर ७५ साल की ना हुई होतीं, तो उनके लिये क्या लिखती ? कैसे लिखती ? छोटे भईया के लिये, दीदी के लिये, किसी के लिये तो नही लिखा कुछ।
वो पिछले ७ सालों से मेरे सहारा है और पिछले तीन सालों से मेरा हमसफर।
उसके लिये उसका हमसफर तेजी से ढूँढ़ रही हूँ मैं। कल ही दो फोटो छाँटी हैं।
लो देखो ये गीत...! ये गीत जिसमे ऐश्वर्या तुम्हे इतनी सुन्दर लगी है कि बस इस गीत के लिए तुम पूरी फिल्म दुबारा देख सकते हो। (जैसा की तुमने कहा ) मगर एक बात... फिल्म देखते हुए मेरे रोने पर, मुझे बार बार मजबूत बनने की झिड़की देते हुए... धूप के चश्मे के साथ फिल्म देखूँगा का मजाक करते हुए आँखें छिपाने और इस असीम सौंदर्य से भरे गीत में बराबर रोते रहने के पीछे क्या था ? ऐश्वर्य की चंचलता में छिपा जीवन या हृत्विक की बेचारगी से भरा जीवन..... मायूसी किसने दी ???
जिसने भी दी। मुझे मेरे जितना समझने, मेरे आज को खूबसूरत बनाने का शुक्रिया... हाँ ये शब्द छोटा है, फिर भी, मेरे पास तुम्हे देने को इस औपचारिकता के अतिरिक्त कुछ है भी तो नही.....
