
"आपका तो काफी फायदा हुआ अबकी पे कमीशन मिसरा जी" बॉस ने मुस्कुराते हुए मिश्रा जी से पूँछा।"
"क्या साहब ! जमाना जो आ गया है, उसमें ७-८ हजार तनखाह बढ़ना कोई मायने नही रखता। देख रहे हैं आप रोज के खर्चे कितने बढ़ रहे हैं। सबकी छोड़िये सर रोज की सब्जी के दाम इतने बढ़ गए हैं कि कमर टूटी जा रही है। १०० का एक पत्ता तो सीधे खतम एक दिन की सब्जी में और आँटा, दाल, चावल, गैस, पेट्रोल किस के बिना काम चलेगा सर... उधर बच्चों की फीस, ड्रेस.. पढ़ाई कराने के १०० चोंचले, जब कि बहुत मँहगे स्कूल में नही पढ़ा रहा हूँ मैं लेकिन एक साधारण जिंदगी के लिये भी लाले पड़े हैं साब"
बॉस "ये तो है खैर" "सही कह रहे हो" जैसे वाक्य बोलते रहे उन्हे लगा कि गलत बयाना ले लिया उन्होने मिश्रा जी से, खैर अब तो सुननी ही थी उनकी.!
मिश्रा जी बोले जा रहे थे "और साहब एक बात जो साफ है सो कहूँ कि सरकार है बड़ी चालू, देखो चुनाव सामने देख कर पैसे तो दे दिये, लेकिन हम लोगो को तो बस झुनझुना ही पकड़ाया है। सारी चाँदी अफसरों की है... यहाँ हमारी तो कहीं २५ हजार हुई है, उधर ९० ९० हजार सेलरी हो गई है साब बड़े लोगो की" सीधा निशाना बॉस पर।
बॉस बेचारे सकपकाये उन्होने सोचा कि अभी कहीं मिश्रा जी और अधिक बखिया ना उधेड़ने लगे सो तुरंत बोले " सही कह रहे हैं मिश्रा जी मँहगाई तो बहुत बढ़ गई है, वो जरा सेवकराम की फाईल लाइयेगा ..! और बॉस ने टॉपिक चेंज कर के बड़ी संतुष्टि पाई।
रात का खाना खाने के बाद जब मिश्रा जी जरा पत्नी के साथ टहलने निकले तो पत्नी ने मूड सही देखते हुए कहा, "सुनो जी वो काम वाली कह रही थी कि ५ साल से एक ही तनखाह पर काम कर रही है,इस बार १०० रु० बढ़ा दे..!"
" दिमाग तो नही खराब हो गया उसका, एकदम से १०० रु० अरे ५० बढ़ा दो..!" मिश्रा जी का बढ़िया मूड एकदम से बदल गया।
"अरे जी वो कह रही थी कि मँहगाई बहुत बढ़ गई है, सब्जी के दाम तो आसमान छू रहे हैं, ३ लोगो में १ किलो से कम सब्जी से काम भी तो नही चलता, देख रहे हैं कोई सब्जी तो नही रह गई सस्ती। फिर आदमी है नही बेचारी का २ २ बच्चो को पढ़ा रही है किसी तरह" पत्नी ने कामवाली की अप्लीकेशन अपनी रिकमंडेशन के साथ लगाई"
" तो कौन कहता है इन लोगो को चादर से अधिक पैर फैलाने को...! मैने कितनी बार कहा उससे लड़के को किसी दुकान पे बैठाने लगे और लड़की को अपने साथ काम सिखाए तो तीन लोग मिल के कितना खर्चा चला सकते हैं, लेकिन शौक जो कलक्टर बनाने का लगा है उसे अपने बच्चो को।.... और तुम ज्यादा वकालत तो किया ना करो उसकी तरफ से..घर में बैठे बैठै बड़ी दया करूना फैलती है,दिन भर फाईलों मे सर खपा के ३० दिन बाद जब ४ पैसे लाने पड़े तो समझ में आये कीमत तुम्हे भी" मिश्रा जी पूरी तरह झल्ला चुके थे अब उनका मन नही लग रहा था टहलने में वे झटके से पलट पड़ै घर की ओर.........!