tag:blogger.com,1999:blog-3468658467196737408.post4446328219796652035..comments2024-02-22T15:46:48.368+05:30Comments on हृदय गवाक्ष: मुक्ति भाग-3कंचन सिंह चौहानhttp://www.blogger.com/profile/12391291933380719702noreply@blogger.comBlogger7125tag:blogger.com,1999:blog-3468658467196737408.post-8912740723102625242007-08-20T11:28:00.000+05:302007-08-20T11:28:00.000+05:30हरिराम जी! इतनी बड़ी पत्रिका की कहानियों के साथ मेर...हरिराम जी! इतनी बड़ी पत्रिका की कहानियों के साथ मेरी कहानी की तुलना करना लड़खड़ाते हुए बच्चे को ताली बजाकर चलने की प्रेरणा देने जैसा ही है। अच्छा लगा। मैं पूर्व में ही बता चुकी हूँ कि कहानी विधा पर मेमरे हाथ बहुत सधे हुए नही हैं, तथापि आप सब का प्रोत्साहन कम से कम अंत तक पहुँचाने के लिये सहायक हो जाता है। धन्यवाद!<BR/><BR/>रवीन्द्र जी आपका अंदाज़ अच्छा लगा, किसी भी रचना पर आपकी टिप्पणी, ऐसा लगता है कि उसी स्तर पर महसूस कर के की जा रही है जिस स्तर पर जा कर के रचना लिखी गई है। कोई कहानी हो या कविता कहीं न कहीं सत्य और कल्पना का सम्मिश्रण ही होते हैं। रचना समाप्त होने दीजिये आपको अपने ही इर्द गिर्द कोई नायिका नज़र आ जायेगी<BR/><BR/>उड़न तश्तरी का अंदाज़ ए बयाँ तो खैर लाजवाब है ही, मुझे बता भी दिया कि क्रमशः न लिखने की गलती पाठकों को भ्रमित कर सकती है और शिकायत भी नही हुई! धन्यवाद। अभी शुरू किया है, अपना मार्गदर्शन यूँ ही देते रहियेगा।<BR/><BR/>मनीष जी धन्यवाद!<BR/><BR/>महावीर जी! आपकी टिप्पणियाँ सदैव ही प्रेरक होती हैं। क्रमशः न लिखने के कारण जो भ्रम हुआ उसके लिये क्षमा चाहती हूँ। अपने पाठकों को इतने सारे प्रश्न दे कर छोड़ देने की धृष्टता नहीं करूँगी। हाँ कुछ सवाल तो छोड़े ही जा सकते है जनता के ऊपर, लेकिन अभी तो शायद बहुद से पात्रों के आने का कारण भी नही स्पष्ट हुआ। आगे से खयाल रखूँगी कि ऐसी त्रुटि न हो!कंचन सिंह चौहानhttps://www.blogger.com/profile/12391291933380719702noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3468658467196737408.post-82981409842839972202007-08-19T04:57:00.000+05:302007-08-19T04:57:00.000+05:30हां, यदि यह अंतिम कड़ी है तो भी गहरा प्रभाव छोड़ ज...हां, यदि यह अंतिम कड़ी है तो भी गहरा प्रभाव छोड़ जाती है। अंतिम पंक्ति पाठक को फिर से हास्पिटल के कमरे में ले जाती है जहां उसकी उत्सुक्ता से भरे हुए प्रश्न का उत्तर मिल जाता है। <BR/>दूसरी ओर, यदि अगले भाग शेष हैं तो दोबारा कह रहा हूं कि बेसरी से इंतज़ार है।महावीरhttps://www.blogger.com/profile/00859697755955147456noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3468658467196737408.post-64663322874431817742007-08-19T04:35:00.000+05:302007-08-19T04:35:00.000+05:30एक ही सांस में तीनों भाग पढ़ गया।पढ़ने के बाद कम्...एक ही सांस में तीनों भाग पढ़ गया।पढ़ने के बाद कम्प्यूटर के सामने कुछ क्षणों तक स्तब्ध सा बैठा रहा जैसे मस्तिष्क को कहानी के पात्रों ने जकड़ लिया हो - और फिर जैसे अचानक से किसी झंझावात ने मस्तिष्क को झंझोड़ दिया हो। बहुत <BR/>ही प्रभावशाली कहानी है, वार्तालाप की भाषा से तो ऐसा लगने लगा जैसे हम पढ़ नहीं रहे, बल्कि साक्षात कोई घटना हमारे सामने हो रही है और हम कुछ कर नहीं पा रहे। <BR/>यह कहानी नहीं, यथार्थ है, साक्षात है। <BR/>अगले भाग की बेसबरी से प्रतीक्षा है।<BR/>महावीरमहावीरhttps://www.blogger.com/profile/00859697755955147456noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3468658467196737408.post-52745797538753619882007-08-19T00:36:00.000+05:302007-08-19T00:36:00.000+05:30बढ़िया ! जारी रखें।बढ़िया ! जारी रखें।Manish Kumarhttps://www.blogger.com/profile/10739848141759842115noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3468658467196737408.post-43390769051012031692007-08-17T22:09:00.000+05:302007-08-17T22:09:00.000+05:30बहुत ही बढ़िया प्रवाह चल रहा है बँधा हुआ. इन्तजार ह...बहुत ही बढ़िया प्रवाह चल रहा है बँधा हुआ. इन्तजार है अगली कड़ी का. इसमें क्रमशः नहीं लिखा-कहीं प्रश्नों में खत्म तो नहीं हो गई??Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3468658467196737408.post-26131919958965286412007-08-17T20:03:00.000+05:302007-08-17T20:03:00.000+05:30पिछले गुरुवार को 'मुक्ति' की पहली कड़ी पढ़ने के बा...पिछले गुरुवार को 'मुक्ति' की पहली कड़ी पढ़ने के बाद मैं तो यही सोच रहा था कि गुरुवार से पहले कंचन जी अब कुछ लिखेंगी ही नहीं। हालांकि मुझे नीचे लिखा हुआ क्रमशः शब्द अच्छा नहीं लग रहा था। फिर भी रचनाकार का निर्णय सर आंखों पर की तर्ज पर हमने उसे स्वीकार कर लिया और हम अगले गुरुवार की प्रतीक्षा करने लगे। सोचा अब अगले हफ्ते ही 'ह्दय गवाक्ष' पर जायेंगे, लेकिन यह क्या आज जब हम यहां पहुंचे तो 'मुक्ति' की तीसरी कड़ी देखकर आश्चर्यमिश्रित खुशी हुई। दूसरी कड़ी से पढ़ना शुरू किया तो पढ़ता ही गया। कई चौंकाने बातें थीं। कभी मन वात्सल्य से भर उठा तो कभी घृणा से। अगर ये कहानी सच है तो मेरी तरफ से इस कहानी की नायिका को सलाम। उम्मीद करता हूं अब आगे की दास्तां पढ़ने के लिये लंबा इंतजार नहीं करना पड़ेगा।Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/09390660446989029892noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3468658467196737408.post-86798304216801044392007-08-17T18:17:00.000+05:302007-08-17T18:17:00.000+05:30आपका क्रमशः लेखन पाठकों को बाँधे रखनेवाला है। प्रा...आपका क्रमशः लेखन पाठकों को बाँधे रखनेवाला है। प्राञ्जल भाषा अब बन्द हो चुकी विशिष्ट हिन्दी पत्रिका "सारिका" की कहानियों की शैली की याद ताजा कर देती है।हरिरामhttps://www.blogger.com/profile/12475263434352801173noreply@blogger.com