tag:blogger.com,1999:blog-3468658467196737408.post1945159667891803961..comments2024-02-22T15:46:48.368+05:30Comments on हृदय गवाक्ष: आज लेकिन लिपट न तू मुझसे!कंचन सिंह चौहानhttp://www.blogger.com/profile/12391291933380719702noreply@blogger.comBlogger7125tag:blogger.com,1999:blog-3468658467196737408.post-66490596534938708082007-10-12T14:26:00.000+05:302007-10-12T14:26:00.000+05:30likhte rahe kanchan ji.bahut achha likhne ke lie t...likhte rahe kanchan ji.bahut achha likhne ke lie tnirantarta jaruri hai.विनय ओझा 'स्नेहिल'https://www.blogger.com/profile/10471466646292910182noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3468658467196737408.post-4863202134963767442007-10-06T20:52:00.000+05:302007-10-06T20:52:00.000+05:30टूटती शाख का एक हिस्सा हूँ, क्यों लिपटती है भला तू...टूटती शाख का एक हिस्सा हूँ, क्यों लिपटती है भला तू मुझसे,<BR/>कब गिरा देगी मुझको तेज़ हवा और बिछड़ जाऊँगा मैं खुद मुझसे।<BR/> वाह वाह वाह वाह<BR/><BR/>कंचन जी ,बहुत ही ख़ूबसूरत है आपका अंदाज़े बयाँ ...बहुत ही अच्छा लगा आपको पढना ....जल्दी ही फिर आना होगा ...आपका भी हमारे चिटठा पे स्वागत है ,Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3468658467196737408.post-85770673600148483972007-10-05T14:24:00.000+05:302007-10-05T14:24:00.000+05:30क्या बात है समीर जी! खूबसूरत! बहुत ही सुंदर! इतनी...क्या बात है समीर जी! खूबसूरत! बहुत ही सुंदर! इतनी बड़ाई इसलिये भी कर रही हूँ कि शुक्र है कि आपने मेरि मौलिकता पर प्रश्नचिह्न नही लगाया, वर्ना तो अभी हम सफाई ही दे रहे होते!<BR/><BR/>रवींन्द्र जी एवं अतुल जी धन्यवाद! <BR/><BR/>धन्यवाद मनीष जी लेकिन ऐसा कुछ नही है कि मेरे सान्निध्य ने कुछ किया है, ये कीड़े उसमें प्राकृतिक रूप से हैं, हाँ बहुत अधिक विकसित नही हो पाए हैं।कंचन सिंह चौहानhttps://www.blogger.com/profile/12391291933380719702noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3468658467196737408.post-75140138025935747922007-10-04T21:48:00.000+05:302007-10-04T21:48:00.000+05:30ज्यादा गहराई से लिखी कविता है। पसंद आई।ज्यादा गहराई से लिखी कविता है। पसंद आई।Atul Chauhanhttps://www.blogger.com/profile/13418818413795828946noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3468658467196737408.post-90309956714254868622007-10-04T21:22:00.000+05:302007-10-04T21:22:00.000+05:30बहुत अच्छी तरह आगे बढ़ा कर पूर्ण किया है आपने इस कव...बहुत अच्छी तरह आगे बढ़ा कर पूर्ण किया है आपने इस कविता को ! <BR/>पर लगता है आपके सानिध्य का असर पिंटू पर भी पड़ रहा है। :)Manish Kumarhttps://www.blogger.com/profile/10739848141759842115noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3468658467196737408.post-22958275246643002572007-10-04T20:06:00.000+05:302007-10-04T20:06:00.000+05:30पिंटू तो...पिंटू तो बहुत अच्छा सोचता है। उसकी चार पंक्तियों में आपका हाथ लगने से यह कविता वाकई में अच्छी बन पड़ी है। निम्न पंक्तियां मुझे विशेष तौर पर पसंद आईं....<BR/>आज जंगल को भला कौन कहे,<BR/>पास मेरे मेरा दरख़्त नही।<BR/>आज है पास मेरे आँधी ये,<BR/>जो अमादा है तोड़ने पे मुझे,<BR/>और नज़रों के सामने तू है,<BR/>जो टूटने भी नही देती मुझे!Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/09390660446989029892noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3468658467196737408.post-14317434550108590392007-10-04T20:03:00.000+05:302007-10-04T20:03:00.000+05:30सुन्दर और उम्दा ख्याल...इन्हीं रास्तों पर कभी मैने...सुन्दर और उम्दा ख्याल...इन्हीं रास्तों पर कभी मैने लिखने का प्रयास किया था:<BR/><BR/>मेरा वजूद<BR/><BR/>मेरा वजूद<BR/><BR/>एक सूखा दरख्त<BR/><BR/>तू<BR/><BR/>मेरा सहारा ना ले.<BR/><BR/>मेरे<BR/><BR/>नसीब मे तो<BR/><BR/>एक दिन गिर<BR/><BR/>जाना है<BR/><BR/>मगर<BR/><BR/>मै<BR/><BR/>तुझको गिरते<BR/><BR/>नहीं देख सकता,<BR/><BR/>प्रिये.<BR/><BR/>---समीर लाल<BR/><BR/>--अच्छा लगा पढ़कर.Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.com